heavenly Abode

heavenly Abode

Damakheda Darshan

प्रेम नगर का अंत न पाया, ज्‍यों आया त्‍यों जावैगा।।

सुन मेरे साजन सुन मेरे मीता, या जीवन में क्‍या क्‍या बीता।।

सिर पाहन का बोझा ल‍ीता, आगे कौन छुड़ावैगा।।

परली पार मेरा मीता खडि़या, उस मिलने का ध्‍यान न धरिया।।

टूटी नाव, उपर जो बैठा, गाफिल गोता खावैगा।।

दास कबीर कहैं समझाई, अंतकाल तेरा कौन सहाई।।

चला अकेला संग न कोई, किया अपना पावैगा। 




क 
का केवल ब्रह्म हे और ब बा बीज सरीर !र रा सब घट रम रहा और ता का नाम कबीर!!
पानी से पैदा नही और स्वासा नही सरीर !
अन्न आहार करता नही , ता का नाम कबीर !!


कबीरा सोई पीर है जो जाने पर पीर !
जो पर्पीर न न जन्ही सो काफीर मैं पीर !!

सब आया एक ही घाट सेऔर उतरा एक ही घाट !
ये बीच मैं दुवीधा पड़ गई तो हो गई बारह बाट !
ग्रंथन माहीं 

अर्थ है, अर्थ माहिं है भूल। लौ लागी निरभय भया, 
मिटि गया संसै सूल।।
हंसा बगुला एक सा, मानसरोवर माहिं। बगा ढिंढौरे माछरी, 

हंसा मोती खांहि।।
सब आये उस एक में, डार पात फल फूल। अब कहो पाछै 

क्या रह्या, गहि पकड़ा जब मूल।।

यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान
सीस दिए जो गुरू मिले, तो भी सस्ता जान।।

तीरथ न्हाये एक फल, साधु मिले फल चार।
सतगुरु मिलै अनेक फल, कहैं कबीर विचार।।

तिमिर गया रवि देखत, कुमति गई गुरुज्ञान।
सुमति गई अति लोभ से, भक्ति गई अभिमान।।

कबीर सब जग निरधना, धनवन्ता नहिं कोय।
धनवंता सोई जनिए, राम नाम धन होय।।
 

साखी आंखि ज्ञान की, समुझ देख मन मांहि।
बिन साखी संसार का, झगड़ा छूटत नांहि।।

ई जग जरते देखिया, अपनी-अपनी आग।
ऐसा कोई ना मिला, जासो रहिए लाग।।

का रे बड़े कुल उपजे, जो रे बड़ी बुधि नाहि।
जैसा फूल उजारि का, मिथ्या लगि सरि जांहि।।

कबीर गर्व न कीजिए, रंक न हंसिए कोय।
अजहुं नाव समुद्र में, ना जाने क्या होय।।

यह मन तो शीतल भया, जब उपजा ब्रह्म ज्ञान।
जेहि बसंदर जग जरे, सो पुनि उदक समान।।

यहां ई सम्बल करिले, आगे विषई बाट।
स्वर्ग बिसाहन सब चले, जहां बनियां न हाट।।

जिन खोजा तिन पाईयां, गहरे पनी पैठ।
मैं बपुरी डूबन डरी, रही किनारे बैठ।।



कबीर जी कहते है कि मन का माला ही सच्चा होता है
 बाक़ी तो दिखावा है यदि माला फेरने से ही भगवान् मिलता है 
तो रहट के गले को देख कितनी बार वो माला फिरती रहती है . 
अर्थात मन से फ़रियाद करने पर ही इश्वर प्राप्त होता है .

जहां दया तहां धर्मं है , जहां लोभ तहां पाप,
जहां क्रोध तहां पाप है,जहां क्षमा तहां आप !!१!!

धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय
माली सींचे सौ घडा , ऋतू आये फल होय !!२!!




जल में कुम्‍भ, कुम्‍भ में जल है, बाहर भीतर पानी
फूटा कुम्‍भ जल जलहीं समाना, यह तथ कथौ गियानी।"